पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज खोलने के शासन के निर्णय का विरोध हुआ मुखर,

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संजय द्विवेदी,

मध्यप्रदेश शासन द्वारा हाल ही में दस जिलों में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड पर मेडिकल कॉलेज शुरू करने का निर्णय लिया है । इन 10 जिलों में हमारा बैतूल भी शामिल है और बैतूल में नया मेडिकल कॉलेज शुरू करने की तैयारी भी जोर-शोर से चालू हो गई है और इसके लिए बकायदा टेंडर भी हो चुके हैं लेकिन इसके पूर्व ही पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज शुरू करने को अनुचित करार देते हुए विरोध के स्वर भी बुलंद होने लगे हैं। इसी तारतम्य में सोमवार दोपहर को मध्यप्रदेश मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन (एमपीएमओए) की बैतूल इकाई के जिलाध्यक्ष डॉ. रूपेश पद्माकर, पीआरओ डॉ. रानू वर्मा, कोषाध्यक्ष डॉ. विनोद बरडे और सदस्य डॉ. जगदीश घोरे व डॉ. रंजीत राठौर सहित अन्य डॉक्टरों ने विधायक हेमंत खंडेलवाल और संभाग के कमिश्नर के नाम बैतूल कलेक्टर एवं सीएमएचओ, सिविल सर्जन को ज्ञापन सौंपकर इसका कड़ा विरोध किया है। ज्ञापन में जिला अस्पताल को ही पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज बनाए जाने से होने वाले नुकसानों की जानकारी भी दी गई है। एमपीएमओए की बैतूल इकाई ने मांग की है कि जिला अस्पताल को मूल स्वरूप में यथावत रखते हुए पीपीपी मोड के कॉलेज को इसके समानांतर बनाए जाने की मांग की है। यहां उल्लेखनीय है कि अभी कुछ दिन पूर्व ही मुलताई के पूर्व विधायक और किसान संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुनील ने भी स्वास्थ्य सेवाएं जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के निजीकरण करने को अनुचित निर्णय बताते हुए इसका सख्त विरोध प्रकट किया है।

                           एमपीएमओए के ज्ञापन में बताया गया है कि पीपीपी मोड पर जिला चिकित्सालय में मेडिकल कॉलेज दिया जाना तय हुआ है। इसके अनुसार 75 प्रतिशत बेड फ्री सेवा एवं 25 प्रतिशत बेड  पेमेंट अथवा आयुष्मान से लिये जायेंगे। इसके साथ ही चिकित्सालय के नर्सिंग स्टाफ व डॉक्टरों की सेवाएँ प्राइवेट मैनेजमेंट के अधीन हो जाएगी या उन्हें निकालकर अन्यत्र शिफ्ट किया जाएगा। इस पूरी व्यवस्था की कुछ तथ्यात्मक व व्यवहारिक खामियां हैं, जिन पर विचार करना अनिवार्य है। बिना इन पर विचार किये जल्दबाजी में इस व्यवस्था को अपनाया जाना हानिकारक हो सकता है। इसके कारण आगे जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

स्वास्थ्य श्रृंखला हो जाएगी भंग–
भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं के लिए एक बेहतर क्रम में गाँव में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों से सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, सिविल अस्पताल, जिला अस्पताल व मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था की गई है। उपरोक्त मॉडल के चलते यह व्यवस्था भंग हो जाएगी, क्योंकि फिर जिला चिकित्सालय का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। जिले में केवल मेडिकल कॉलेज होगा जो कि प्राइवेट प्रबंधन (पीपीपी) के अधीन होगा। ऐसे में पूर्ण रूप से द्वितीय व तृतीय स्तर की स्वास्थ्य सेवाएं प्रदेश सरकार के हस्तक्षेप से बाहर होगी और प्राइवेट क्षेत्र की मनमानी होगी।

सरकारी कार्य भी प्राइवेट संस्था में–
इन दस जिलों में पूर्व शासकीय स्वास्थ्य संस्था के अभाव में एमएलसी, पीएम व आयु निर्धारण इत्यादि जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी प्राइवेट संस्था द्वारा किये जायेंगे, जो कि व्यवस्था के लिये उचित प्रतीत नहीं होता। इसके साथ ही इसके सही तरीकों से किए जाने पर भी संदेह होगा, क्योंकि अप्रत्यक्ष रूप से ये सभी कार्य शासकीय नियंत्रण से बाहर हो जायेंगे।  यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि अन्य बड़े शहरों/जिलों जैसे भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर आदि में भी फोरेंसिक साइंस व पीएम जैसे ये कार्य, सरकारी मेडिकल कॉलेज या सरकारी अस्पतालों में ही संचालित हो रहे हैं। 

बढ़ने की जगह कम हो जाएंगे बेड–
वर्तमान में जिला चिकित्सालय में 500 बेड उपलब्ध हैं। पीपीपी मोड में भी इनकी संख्या उतनी ही रहेगी, लेकिन 25 प्रतिशत पेमेंट के अनुसार 500 में से 125 बेड पेमेंट कोटे के हो जायेंगे, जिस पर आयुष्मान वाले मरीजों का या पैसों से इलाज होगा। ये पेमेंट वाले 25 प्रतिशत बेड पर मरीज लेने का निर्धारण कौन करेगा, यह भी तय नहीं। ऐसे में जिले के आम और गरीब लोगों के लिए केवल 375 बेड ही फ्री बचेंगे। इसमें भी कौन से मरीज का इलाज फ्री होगा व कौन से मरीज पेमेंट देंगे, इसकी पारदर्शिता का नियंत्रण शासन के नियंत्रण से बाहर ही होगा। बहरहाल यह तय है कि इस व्यवस्था से बेड की संख्या तो कम हो ही जाएगी।

इस व्यवस्था को अमल में लाना जरूरी–
एमपीएमओए ने इन हालातों को देखकर ज्ञापन में निवेदन किया है कि जिला चिकित्सालय में कार्यरत सभी डॉक्टर नर्सिंग ऑफिसर, सभी तृतीय व चतुर्थ कर्मचारी (फार्मास्टि एवं टेक्नीशियन) इत्यादि को यथावत शासन के अधीन रखकर ही कार्य संचालित किया जाए। साथ ही जिला चिकित्सालय के मूल स्वरूप को यथावत रखते हुए मेडिकल कॉलेज को समानांतर रूप से ही संचालित किये जाने की व्यवस्था पर विचार किया जाएं। ताकि उपरोक्त समस्याओं का भविष्य में सामना न करना पड़ें। ज्ञापन की प्रति मुख्यमंत्री मप्र. शासन, स्वास्थ्य मंत्री, स्वास्थ्य सचिव मप्र. शासन, संभागायुक्त नर्मदापुरम, कलेक्टर बैतूल और सीएमएचओ बैतूल तथा सिविल सर्जन बैतूल को प्रेषित की गई है।

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