पीढ़ियों का इतिहास समेटे हुए हैं नगर की ऐतिहासिक  रामलीला,

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महामारी की मनौती के रूप में 1904 से प्रारंभ हुई ऐतिहासिक रामलीला अपने साथ पीढ़ियों का इतिहास समेटे हुए हैं, इस लीला में परंपरागत रूप से स्थानीय लोग ही रामायण के पात्र की भूमिका निभाते हैं, और यह भूमिका अपने आने वाली पीढ़ियों को विरासत मे मिलती है। रामलीला में राम ,लक्ष्मण , विभीषण, दशरथ ,कैकई हनुमान, मेघनाथ , नारायणतक, अंगद जैसे अनेकों भूमिकाएं हैं । जो पीढ़ियों से हस्तांतरित होती रही है।

रामलीला मंच पर अभिनय करने वाले  ऐसे पात्र भी है जिनकी 5 पीढ़ियां निरंतर रामलीला मंच से जुड़ी रही है, जिनके दादा पीता और वह स्वयं और अब उनकी औलाद एवं पौत्र भी इस लीला में काम कर रहे हैं। रामलीला के आरंभ के संबंध रामलीला से जुड़े संजय अग्रवाल  बताते हैं कि, रामलीला का आरंभ  1904 मे उस वक्त हुआ था, जब नगर में महामारी फैली हुई थी, और लक्ष्मी नारायण मंदिर के  बापुदास महंत ने यह मनौती मानी थी कि, अगर महामारी समाप्त हो जाएगी तो वह, प्रतिवर्ष रामलीला का मंचन कराएंगे, महामारी समाप्त हुई और तब से अब तक लगभग 118 वर्षों तक नगर में निरंतर रामलीला का मंचन किया जा रहा है जो आज नगर की सांस्कृतिक धरोहर है।

राम लीला  में बाल किशन चंदेल लखेरा महत्वपूर्ण कलाकारों में से एक है जो रामलीला में विभिन्न पात्रों की भूमिका निभाते हैं । हास्य कलाकार से लेकर उनका अभिनय और व्यक्तित्व रामलीला मंचन में जहां दर्शकों को जोड़ता है वही पात्रों को स्मरणीय बनाता है । वह 5 पीढ़ियों से इस लीला में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाते आ रहे हैं, बाल किशन चंदेल जिनकी उम्र लगभग 73 वर्ष है वह बताते हैं कि

मैं लगभग 53 वर्षों से रामलीला में विभिन्न पात्रो की भूमिका निभाते रहा हूं, मुझसे पहले मेरे पिताजी स्वर्गीय खेमलाल  लखेरा, उनके दादाजी स्वर्गीय नंदलाल लखेरा रामलीला में सूर्पनखा, कुंभकरण, केवट मंथंरा, सबरी ,विभीषण की भूमिका निभाते रहे हैं, अब यही सब भूमिका वह निभाते हैं, उनका पुत्र मनीष चंद्र चंदेल और पौत्र शशि चंदेल भी रामलीला में अनेक पात्र की भूमिका निभा रहे हैं । इस प्रकार हम 5 पीढ़ियों से इस रामलीला से जुड़े है। बालकिशन जी बताते हैं कि देश की अन्य रामलीला की तुलना में मुलताई नगर में आयोजित होने वाली रामलीला अलग इसलिए है क्योंकि यहां सभी पात्र स्थानीय, होते हैं और यह सिद्ध रामलीला है जहां लोग पूरे धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन के साथ इस लीला का मंचन करते हैं।

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