ताप्ती स्मरण मात्र से होती है असीम पुण्य की प्राप्ति,

0

ताप्ती भारत की प्राचीन धार्मिक एवं पौराणिक नदियों के रूप मे युगो युगो पूजनीय रही है। ताप्ती को आदि गंगा भी कहा जाता है। ताप्ती के जल में पाए जाने वाले गुण किसी अन्य नदी में नहीं पाए जाते, यहां तक की गंगा में भी नहीं । ताप्ती महात्म्य के अनुसार जो पुण्य ताप्ती के स्मरण मात्र से प्राप्त होता है वह पुण्य अन्य नदियों के दर्शन स्नान से भी प्राप्त नहीं होता । संपूर्ण आर्यव्रत में श्रेष्ठ मुक्ति दायिनी यम भागिनी ताप्ती की महिमा की गाथाओं से महाभारत ,भविष्य पुराण, शिव पुराण, भागवत ,स्कंद पुराण ,ताप्ती महात्म्य आदि भरे पड़े है।

मुलताई उकगं पठार के उपरी छोर पर स्थित मनमोहक सुंदर कटीली झाडय़िों से घिरी पुण्य सलिला मां ताप्ती की हृदय स्थली मुलताई  को सौंदर्य की प्रतिमा कहा जाता है ।ताप्ती उद्गम स्थल होने से इसे जहां, पवित्र नगरी का स्थान प्राप्त है वही यह भौगोलिक, पौराणिक तथा ऐतिहासिक विशिष्टता  की प्रतीक भी है। मुलताई नगरी समुद्री सतह से करीब 2526 फीट ऊंचाई पर देश के मध्य भाग में स्थित है मुलताई का नाम प्राचीन समय में मूलतापी हुआ करता था जहां के मूल निवासी गोण्ड कोरकु  हुआ करते थे ,समय के साथ ही नाम में भी परिवर्तन हुआ और आज मुलताई के नाम से जाना जाता है।

मुलतापी अर्थात ताप्ती का मूल निवास स्थान या उद्गम स्थान। ताप्ती अर्थात ताप को हरण करने वाली, ताप्ती के साथ ताप्ती जल में भी अनेक गुण पाए जाते हैं जो अन्य नदियों में नहीं पाए जाते ,ताप्ती के साथ ही ताप्ती जल की गुणवत्ता का वर्णन भी  अनेक पुराणों एवं  दंतकथाओं में मिलता है , माना जाता है कि ताप्ती जल में बाल एवं हड्डियां गल जाती है। ताप्ती स्नान से कुष्ठ रोग चर्म रोग आदि का अंत हो जाता है। सामान्यत: नदियों एवं तालाबों का जल खारापन लिए होता है किंतु ताप्ती का ज़ल मीठा एवं दाल गलाने योग्य होता है । ताप्ती स्नान से व्यक्ति क्रोध मुक्त होता है यही कारण है कि मुलताई नगरी अमन पसंद एवं शांति का प्रतीक है नगर की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि हमेशा से ही बलवान रही है

क्षेत्र वासियों का जीवन लोक जीवन से जुड़ा रहा है यही कारण है कि क्षेत्र वासियों में संस्कारों की प्रबलता दिखाई देती है जो सहज क्षेत्रवासियों को अलग दिखाती है जल की विशेषता के संबंध में कुछ विशेषज्ञों का मानना है की ज्वालामुखी प्रभाव के कारण जल में मिले खनिज लवण विशेष तौर से गंधक जो कि चर्म रोगों की औषधि है के जल में मिश्रण के कारण ताप्ती जल में औषधीय गुण पाए जाते हैं ।  यह वैज्ञानिक तथ्य हो सकते हैं, किंतु लोग इसे मां ताप्ती की महिमा के रूप में ही देखते हैं ।मुलताई नगरी तपोभूमि एवं देव भूमि रही है अनेक ऋषि मुनियों ने यहां तपस्या की है एकदंत कथा है, कि यहां मुनि नारद ने 100 वर्षों तक तपस्या की थी जिसका प्रमाण नारद टेकड़ी एवं नारद कुंड नगर में आज भी है। नगर में सप्तरिषि का अखाड़ा भी विद्यमान बताया जाता है वैसे संपूर्ण नगर में 7 कुंड बताए जाते हैं जिसमें ताप्ती कुंड शनि कुडं दान कुंड सूर्य कुंड  नारद कुंड पाप कुंड आदि प्रमुख है ताप्ती के अंत तक 360 घाट तथा 108 प्रमुख तीर्थ बताए गए हैं ।

मुक्ति दायिनी ताप्ती के संबंध में ताप्ती पुराण में आता है कि ताप्ती का जन्म आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ था ताकि वह ब्रह्मा जी को शांति प्रदान कर सकें वैसे संपूर्ण आषाढ़ मास में ताप्ती तट पर दान ,तप, स्नान आदि को अत्यंत पुण्य कर्म माना जाता है ताप्ती जन्म के संदर्भ में महाभारत के आदि पर्व में कहा गया है कि ताकि सूर्य भगवान की पुत्री है सूर्य अपने तेज से ताप उत्पन्न करते हैं , इसीलिए उनकी पुत्री का नाम तापी है तापी को पुराणों में सूर्य एवं उनकी पत्नी छाया की पुत्री बताया गया है।

पुराणों में ताप्ती को जहां युगों-युगों प्राचीन माना गया है वही प्रत्येक युग के आरंभ का आधार भी ।ताप्ती की प्राचीनता का अनुमान भविष्य पुराण के इस कथन से भी लगाया जा सकता है कि त्रेता युग के अंत  के पूर्व राजा संवरण ताप्ती को लेकर सूर्य लोग चले गए थे, और जब दापर युग का प्रारंभ हुआ तो भगवान सूर्य की आज्ञा से सवरण ताप्ती को साथ लेकर मुनि वशिष्ठ के साथ  पृथ्वी पर अवतरित हुए और इस प्रकार दापर युग का आरंभ हुआ

ताप्ती नदी देश की प्रमुख नदियों में से एक है यह मुलताई से निकलकर मध्य प्रदेश की सतपुड़ा की मनमोहक श्रेणियों  को पार कर महाराष्ट्र में पदार्पण करती है यहां पर आरंभ में इसकी सहायक नदियों के संगम स्थल से पूर्व समतल एवं कृषि क्षेत्र से गुजरती है आगे जाकर खानदेश की चट्टानी बाधाओं को चीरकर आगे बढ़ती है। और अनेकों आकर्षक एवं दर्शनीय स्थल बनाती है इसके उपरांत प्रारंभ होता है गुजरात प्रदेश का सफर गुजरात की राजपीपला पहाडय़िों पर लहराती हुई आगे बढ़ती है तो प्रतीत होता है मानो जल संगीत पर बाला नृत्य कर रही हो। राजपिपला को पार कर  ताप्ती का विशाल एवं विकराल रूप देखते ही बनता है यहां इसकी चौड़ाई 2400  से 300 फुट तथा किनारे 30 से 40 फुट तक उचे हैं। जिसके कारण ताप्ती अनेकों दीप बनाती है ताप्ती का मुख्य दीप सूरत शहर से 6 किलोमीटर नीचे है। यही सूरत में ताप्ती पर बना 2246 फुट लंबा पुल भारत के महत्वपूर्ण पुर्ण पुलो में से एक है सूरत उपजाऊ  मैदान के उपरांत ताप्ती  लगभग 740 किलो मीटर लंबा सफर समाप्त होता है और वह अरब सागर खंभात की खाड़ी के आगोश में समा जाती है ताप्ती की सहायक नदियों में पूर्णा, बाड़ू ,गोरी, पादरा ,और शिवा है जो सतपुड़ा की पर्वत श्रेणियों की निकटता के कारण बाई तट पर संगम करती है । 

————————————————————————————————-

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here