मुलताई- पवित्र नगरी में होने जा रहे सूर्य महायज्ञ की तैयारी जोरों पर है इस भव्य आयोजन में जगतगुरु शंकराचार्य सदानंद सरस्वती भाग लेंगे। माना जा रहा है कि जगतगुरु शंकराचार्य ताप्ती के पवित्र कुंडों तक भी पहुंचेंगे
जिसको लेकर प्रशासन ने कुंडो की सफाई और मार्ग की बाधा को हटाना प्रारंभ कर दिया है। प्रशासन ने प्राचीन ताप्ती मंदिर और सूर्य कुंड के सामने बने पुराने मकान को पेट्टे की समय अवधि समाप्त होने पर हटा दिया और मकान के स्थान का समतलीकरण कर दिया है जिससे अब श्रद्धालुओं को ताप्ती के प्राचीन मंदिर और सूर्यकुंड पहुंचने में दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा साथ ही अब कुंड गली से जाने पर श्रद्धालुओं को कुंड एवं मंदिरों के गुंबद का शानदार व्यू दिखाई देने लगा है।
नगर पालिका शीघ्र ही समतलीकरण स्थल को सीमेंटी करण कर आकर्षक रूप देगी। इसके साथ ही नगर पालिका ने प्राचीन धरोहर एवं नगर की पहचान कुंडो के सफाई का कार्य भी प्रारंभ कर दिया है नगर पालिका कर्मचारियों ने आज कुंड सफाई का कार्य पाप से किया इसके अलावा दान कुंड, सूर्यकुंड का सफाई कार्य भी किया जाना है।


राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज हुए कुंड
दिनेश कालभोर ने जानकारी देते हुए बताया कि गंगा दशहरा ,,एव गायत्री जयंती पर नगर के सभी ताप्ती कुंडो को मप्र राजस्व रिकार्ड में दर्ज कर लिया गया है। अब माँ ताप्ती के पवित्र कुंड,,माँ ताप्ती मंदिर,,माँ ताप्ती नदी सभी रिकार्ड में दर्ज हो चुके है इसी आधार पर अब इन सभी देवस्थलों सहित नदी कुंडों का विकास होगा अब माँ ताप्ती लोक को लेकर जो सरकार एव ताप्ती लोक के अड़ंगे थे अब किसी प्रकार की दिक्कत नही रही बहुत जल्द मप्र सरकार एव धर्मस्य पर्यटन विभाग इस पुनीत कार्य मे एक्सन में आएगी।

कुंडो को प्राचीन गतिमान जलधारा से जोड़ना आवश्यक,
नगर में जब भी कोई प्रमुख धार्मिक आयोजन होता है हमें नगर की धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहचान कुंडो की याद आती है किंतु इसके बाद यह कुंड गंदगी से भर दिए जाते हैं। और जानकार बताते हैं कि इनका कायाकल्प तब तलक संभव नहीं है जब तक इन्हें प्राचीन विद्या से नहीं जोड़ा जाएगा।

प्राचीन ताप्ती मंदिर के पास बने गोमुख से जलधारा प्रवाहित कर इसे पर्व की भांति सूर्यकुंड और इसके बाद पाप कुंड होते हुए जलधारा को ताप्ती के प्रथम पुलिया तक जोड़ना होगा जिससे इन गुंडो में जल प्रवाहित होते रहे और कुंडो का शुद्ध जल बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण बने और यह तभी संभव है जब यह पूर्व वर्षों के भांति फाड़ी की नालियों से एक दूसरे से जुडे रहे जिसमें सदैव जल प्रवाहित होते रहे।