सिसकियाँ ले रही विश्व बैंक की सहायता से बनी चंदोरा सिंचाई परियोजना
मुलताई— विश्व बैंक की सहायता से करोड़ों रुपये की लागत से बनी चंदोरा मध्यम सिंचाई परियोजना अधिकारियों की अनदेखी के चलते दिन-ब-दिन बद से बदतर होती जा रही है। एक समय किसानों के लिए वरदान माने जाने वाला चंदोरा बांध अब एक बार फिर अपने भविष्य को लेकर संकट में दिखाई दे रहा है। जानकारों के अनुसार चंदोरा बांध के अप पोर्शन और डाउन पोर्शन में जगह-जगह पिचिंग धंस चुकी है। बांध के निचले हिस्से और टॉप लेवल पर बड़ी-बड़ी झाड़ियाँ उग आई हैं, जो अब पेड़ों का रूप ले रही हैं। इनकी जड़ों से बांध के मुख्य स्ट्रक्चर को नुकसान पहुँच रहा है। टॉप पोर्शन की स्थिति इतनी खराब है कि वहाँ वाहन चलाना तो दूर, पैदल चलना भी कठिन हो गया है।

जबकि टॉप लेवल को आपातकालीन मार्ग माना जाता है, जिसका रख-रखाव अत्यंत आवश्यक होता है। इसके बावजूद चंदोरा जैसे संवेदनशील बांध के टॉप लेवल की हालत बेहद दयनीय बनी हुई है।
चंदोरा बांध की स्थिति जहाँ लगातार बिगड़ती जा रही है, वहीं इससे जुड़ी नहरें भी जगह-जगह से टूट रही हैं और अपनी दिशा बदल रही हैं। नहरों में झाड़ियाँ उग आई हैं। सिंचाई विभाग द्वारा सफाई के नाम पर केवल औपचारिकताएँ निभाई जा रही हैं।
परिणामस्वरूप क्षेत्र की यह महत्वाकांक्षी सिंचाई परियोजना और इसकी नहरें आज अपनी बदहाली पर आँसू बहाती नजर आ रही हैं। किसानों का कहना है कि उन्होंने कई बार बांध की बिगड़ती स्थिति से अधिकारियों को अवगत कराया, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
31 जुलाई की सुबह याद कर आज भी सिहर उठते हैं किसान
31 जुलाई 1991 की वह सुबह आज भी चंदोरा बांध क्षेत्र के किसानों को सिहरा देती है। उस दिन चंदोरा बांध का आरडी 610 से 840 के बीच का हिस्सा टूटकर बह गया था। तेज बहाव के कारण कई गाँव जलमग्न हो गए थे। इस जल-तांडव में अनेक मवेशियों की मौत हो गई थी और सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि बंजर हो गई थी। फसलें पूरी तरह तबाह हो गई थीं। इस भीषण त्रासदी को किसान आज भी भूले नहीं हैं। इसके बावजूद शासन-प्रशासन ने कोई ठोस सबक नहीं लिया। चंदोरा बांध का निर्माण कार्य वर्ष 1984 में प्रारंभ हुआ था। बांध ढहने के बाद इसे सिंचाई योग्य बनाने के लिए सिंचाई वैज्ञानिक डॉ. थॉमस की सलाह पर सुधार कार्य किए गए और वर्ष 2005 में बांध को पूरी तरह भरा गया। निर्माण और सुधार की इस पूरी प्रक्रिया में 20 वर्षों से अधिक समय लगा। आज 2025 तक, लगभग 40 वर्ष बीत जाने के बाद भी चंदोरा बांध का पानी नहर के अंतिम छोर (टेल) तक नहीं पहुँच पा रहा है।

किसानों के बजाय नदी में बह रहा है नहर का पानी
नहरों की सफाई के नाम पर सिंचाई विभाग हर वर्ष लाखों रुपये खर्च करता है, लेकिन यह राशि कहाँ और कैसे खर्च की जाती है, इसकी जमीनी हकीकत कहीं नजर नहीं आती। रख-रखाव के अभाव में चंदोरा बांध और उसकी नहरें बर्बादी की ओर बढ़ रही हैं। इसका सीधा नुकसान किसानों को हो रहा है, क्योंकि पानी खेतों तक पहुँचने के बजाय ताप्ती नदी में बह रहा है। किसानों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अधिकारी शिकायत करने वालों को बाद में निशाना बनाते हैं।

हकीकत यह है कि चंदोरा से बाड़े गाँव तक नहरों की सफाई के नाम पर औपचारिकता भी पूरी नहीं की गई है। जगह-जगह झाड़ियाँ उगी हैं, जिससे लाइनिंग के मुख्य निर्माण को नुकसान पहुँच रहा है। कुंडलिक बारस्कर के खेत के ऊपर नाले के पास नहर कई स्थानों पर क्षतिग्रस्त हो चुकी है। अनेक जगहों पर ब्रांच नहरें बंद नहीं हो पाने के कारण पानी किसानों को मिलने के बजाय सीधे ताप्ती नदी में बह रहा है।
इनका कहना
चंदोरा जलाशय की लाइनिंग का कार्य शीघ्र प्रारंभ किया जाएगा। जलाशय की सफाई के लिए योजना बनाकर जल्द काम शुरू किया जाएगा। वर्तमान में चंदोरा के अंतिम टेल क्षेत्र तक पानी नहीं पहुँच पा रहा है, इस समस्या का भी शीघ्र समाधान किया जाएगा।
चंद्रशेखर देशमुख, विधायक, मुलताई विधानसभा
चंदोरा बांध के सुधार के लिए ड्रिप फेस-2 योजना के तहत 12 करोड़ 92 लाख रुपये का एस्टीमेट तैयार किया गया है। इसके अतिरिक्त ईआरएम योजना के अंतर्गत नहर लाइनिंग कार्य के लिए 18 करोड़ 42 लाख रुपये की योजना प्रस्तावित है। विभागीय प्रक्रिया पूर्ण होते ही सुधार कार्य प्रारंभ किया जाएगा।
शिवकुमार नागले, प्रभारी एसडीओ, जल संसाधन विभाग, मुलताई

