मुलताई- पवित्र नगरी के जिन कुओं का पानी पीकर अनेकों पीढ़ीया परवान चडी, जो कुएं वर्षों तक हमारे पारंपरिक संस्कारों के किस्से कहानियों से जुड़े रहे ,आज वह कचरा घर में तब्दील होकर या तो अपना अस्तित्व खो चुके हैं या फिर अपना भविष्य तलाशते दिखाई देते हैं ।
जब भी शासन परंपरागत जल स्रोतो के संरक्षण की योजना चलाता है नगर वासियों की प्यास बुझाने वाले यह कुएं शासन, प्रशासन और नेताओं को आशा भरी दृष्टि से निहारते दिखाई देते हैं किंतु योजनाएं आती है चली जाती है इन कुपो के अच्छे दिन कभी नहीं आते । हाल ही में जिला स्तरीय जल गंगा संवर्धन अभियान का आरंभ मुलताई ताप्ती तट से हुआ इस अभियान का मकसद भी तालाब, नदियों ,कुंड़ और कुओं को पुनर्जीवित करना था किंतु एक बार फिर एक महत्वपूर्ण अभियान दम तोड़ते कुओं को बगैर छुए गुजर गया। पवित्र नगरी के दर्जनों कुपो को शायद किसी भागीरथी की तलाश है जो इन्हें फिर से जीवनदान दे सकें ।
आधा दर्जन सार्वजनिक कुएँ हो गए जमीदोज
पवित्र नगरी के आधा दर्जन से अधिक सार्वजनिक कुएँ जीवित रहने की जंग हार चुके हैं जिन्हें खोजना कठिन है। देखरेख के अभाव एवं बदली हुई आवश्यकता ने इनका वजूद समाप्त कर दिया। पटेल वार्ड पुराने हॉस्पिटल के सामने स्थित प्राचीन कुआं समाप्त हो गया, हाई स्कूल ग्राउंड सिविल लाइन में बना प्राचीन कुआं हाल ही में हुए भवन निर्माण के चलते मलवा भरकर बंद कर दिया गया। प्राचीन ताप्ती मंदिर गली में शिवचरण सेठ के मकान के पीछे स्थित कुआं बंद कर दिया गया।

पुलिस लाइन में बरसों पुराना मीठे पानी का कुआं 1 वर्ष पूर्व बाउंड्री वॉल निर्माण के नाम पर कचरा भरकर बंद कर दिया गया आज इसके अवशेष खोजना भी कठिन है ।इसी प्रकार नाका नंबर 1 पर स्थित पुराने आरटीओ के सामने बना सार्वजनिक कुआं भी अब दिखाई नहीं देता इसके अलावा नगर में जो कुएं दिखाई देते हैं वह भी रखरखाव के अभाव में या तो कचरे से भर गए हैं या पूरी तरह से समाप्त होने की बाट जोह रहे हैं।

नगर का सदाबहार कुआं
फवारा चौक पर स्थित मामा जी का कुआं कभी नगर वासियों के लिए वरदान से कम नहीं था भीषण गर्मी में यह कुआं कभी न खत्म होने वाले अपने जल से लोगों की प्यास बुझाता है ।वर्तमान समय में भी इस कुएं का पानी अनेक परिवारों की प्यास बुझा रहा है। राजा खंडेलवाल बताते हैं कुछ वर्ष पूर्व मोहल्ले वालों ने मिलकर इस कुएं की सफाई की थी नगरपालिका ने आज तक इस पर कोई ध्यान नहीं दिया इसे साफ कर गहराई बढ़ाकर इस पर हेड पंप लगाया जा सकता है ताकि सदाबहार इस कुए की अमरता बनी रहे।

टेकढ़ी वाले स्कूल के कुए का बुरा हाल
नगर के अत्यंत प्राचीन स्कूलों में से एक टेकडे वाला हिंदी स्कूल का कुआं मलबे से भरता जा रहा है धीरे-धीरे इसमें गंदगी का अंबार लग रहा है कभी इस कुएँ में 12 माह पानी हुआ करता था जिस में लगी गोल गर्री से पानी निकाल कर यहां के बड़े बगीचे को सिचा जाता था किंतु आज ना तो बगीचा है और ना ही यह कुआं पानी देने योग्य बचा है

पानी के नाम पर यहां कचरे से ऊपर तैरता जल दिखाई देता है जो बताता है कि थोड़ी सी सफाई के बाद यह जल उगलना प्रारंभ कर देगा इस वार्ड के पूर्व पार्षद हनी सरदार बताते हैं कि उनके प्रयास से पूर्व मे कुए पर हेड पंप लगाया गया था कुएं की सफाई की गई थी किंतु उसके बाद स्थिति फिर जस की तस हो गई। नगर पालिका को नए बोर कराने के बजाय परंपरागत जल स्रोत के संरक्षण के प्रयास करने चाहिए।
कुओं का पुनरुत्थान आवश्यक क्यों ?
सतपुड़ा के उत्तरी छोर पर बसा मुलताई क्षेत्र समुद्र की सतह से अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित है ऊंचाई में पचमढ़ी के बाद मुलताई को द्वितीय स्थान प्राप्त है घाटी क्षेत्र होने कारण वर्षा के जल को रोकना नगर के लिए बड़ी चुनौती है अधिकांश वर्षा का जल बहकर कर ताप्ती से मिलकर अरब सागर में चला जाता है प्रतिवर्ष होने वाले बोर निरंतर जल निकासी कर जल स्तर को नुकसान पहुंचा रहे हैं नगर के कुएँ नगर का जल स्तर बनाए रखने का बड़ा साधन हो सकते हैं बशर्त हम परंपरागत जल स्रोतों का सम्मान करने आगे आएं।

आज भी प्रासंगिक है हमारी परंपराओं से जुड़े कुंए
समाप्त होते कुंओ की प्रासंगिकता को लेकर हमने प्राचार्य एवं पर्यावरण प्रेमी आरके मालवीय, न्यू कार्मेल कान्वेंट की प्राचार्य वनिता नायर से चर्चा की उन्होंने बताया कि बोर एवं नल की परवर्ती वाले इस दौर में हम परंपरागत जल स्रोतों को छोडक़र आगे तो बढ़ गए किंतु इस अनदेखी के परिणाम हमें अभी से दिखाई देने लगे हैं ।हमारा जल स्तर पाताल की ओर जा रहा है और समय रहते अगर हम इन कुओ की ओर नहीं लौटे तो आगामी समय में भीषण परिणाम हमारे सामने होंगे। आज नगर का जलस्तर जिस रफ्तार से घट रहा है इसका एक कारण इन कुओं का कचरा घर में तब्दील हो जाना भी है। नगर में एक दर्जन से अधिक कुए हैं जो आज छोटे से प्रयास से जीवित किए जा सकते हैं कुछ कुंए आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने कि आज से 100 साल पहले हुआ करते थे इतने भीषण जल संकट के दौर में जहां अनेक बोर दम तोड़ चुके हैं इन कुओ में आज पानी है।